प्यूबर्टी Puberty – यह एक ऐसी अवस्था जिसमे शारीरिक , मानसिक , जैविक और भावनात्मक बदलाव होना प्रारंभ होते है, जिसमे लड़की या लड़के बचपन से यौवन अवस्था में कदम रखते हैं। लड़कियों में यह अवस्था 10 से 14 वर्ष एवं लड़कों में 12 से 16 वर्ष होती है। जिसे प्यूबर्टी या किशोरावस्था या यौवन की शुरुआत होना कहते है।
प्यूबर्टी Puberty – प्रकृति का सुन्दर उपहार
प्यूबर्टी या यौवन एक ऐसा अहम पड़ाव है। जिसमे एक लड़की या लड़का यौवन की अवस्था में प्रवेश करता है। जिसमे उसके प्रजनन अंग धीरे – धीरे विकसित होते है । यौवन Puberty अवस्था में लड़की या लड़के में शारीरिक एवं जैविक या हार्मोनल बदलाव होते है। जिसमे वह पुरुष या महिला में धीरे धीरे परिवर्तित होता है।
प्यूबर्टी Puberty में शारीरिक बदलाव
लड़कियों में शारीरिक बदलाव
आम तौर पर लड़किओं में 11 साल की उम्र में शुरुआत हो जाती है। परन्तु ज़रूरी नहीं है कि सब बच्चों के लिए यह आयुवर्ग समान हो। अगर आपके बच्चे में प्यूबर्टी Puberty के लक्षण उनके सहपाठियों से पहले या बाद में नज़र आएं तो घबराईए नहीं। यह बहुत ही नेचुरल है। हर बच्चा अपने समय के अनुसार प्यूबर्टी के पड़ाव तक पहुँच ही जाता है।
प्यूबर्टी Puberty की शुरुआत लगभग 8 से 14 साल की उम्र तक होती है। पर यह एक बार में नहीं आता। यौवन के कई पड़ाव होते है जो धीरे-धीरे शरीर में बदलाव लाते है। कुछ बदलाव जल्दी प्रकट होते है और कुछ बाद में।
प्यूबर्टी Puberty एक महत्वपूर्ण चरण है जिसमें शारीरिक बदलाव के साथ-साथ मानसिक प्रगति भी होती है। इसलिए बच्चों का इस दौरान भावात्मक होना एक आम बात है। आएं जानते है प्यूबर्टी के दौरान होने वाले कुछ अहम बदलाओं के बारे में –
1. स्तन का विकसित होना – लड़कियों में प्यूबर्टी Puberty या यौवन के आगमन का पहला संकेत है स्तन का विकसित होना। “लगभग 9 से 10 साल के बीचमें लड़कियों में स्तन की कलियाँ आने लगती हैं । ऐसे समय में छाती का नाज़ुक और मुलायम होना एक आम बात है और इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। ” ऐसा भी हो सकता है कि एक स्तन दूसरे स्तन से बढ़ा लगने लगे परन्तु यह भी प्राकृतिक है।
2. प्राइवेट पार्ट और शरीर के बाकी हिस्सों पर बाल आना – प्यूबर्टी के सबसे पहले संकेतों में से एक है निजी अंगों पर बाल आना। शुरूआती समय में जननांग में छोटे-छोटे बाल प्रकट होने लगते है। फिर धीरे-धीरे गुप्तांगों के ऊपरी हिस्सों पर भी बाल आने लगते है।
3. शरीर के आकार और रूप में बदलाव – प्यूबर्टी शुरू होने के लगभग एक साल बाद लड़कियों के शरीर के आकार में भी बदलाव आने लगता है। उनके ऊपरी बाज़ुओं, थाई और ऊपरी पीठ पर ज़्यादा वसा जमने लगता है। जिससे उनके शरीर को एक वयस्क महिला का आकार मिलने लगता है। धीरे -धीरे स्किन का ग्लो भी बढ़ता है।
4. मासिक धर्म का शुरू होना – प्यूबर्टी के समय लड़कियों में होने वाला सबसे बढ़ा बदलाव है मासिक धर्म की शुरुआत। हर बढ़ती उम्र की लड़की को इस कुदरती प्रक्रिया की जानकारी होनी चाहिए। ताकि समय आने पर वह मासिक धर्म होने पर घबरायें नहीं।
मासिक धर्म – एक प्राकृतिक उपहार
लड़कियों को मासिक धर्म तब होता है जब उनके प्रजननीय अंग पूरी तरह से विकसित हो जाते है। यह क्रिया गर्भधारण की क्रिया से जुडी होती है ।
प्यूबर्टी के समय लड़कियों में दो मादा होर्मोनेस – एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन बनने लगते है। लड़कियों में मासिक धर्म 11 -12 वर्ष में शुरू हो जाता है ऐसे में यह आवश्यक है की पेरेंट्स अपनी बच्ची को इसके बारे में समझाए एवं भावनात्मक सपोर्ट करे। और हाइजीन , सेनेटरी पेड , आदि की भी आवश्यक जानकारी देनी चाहिए।
लड़कों में होने वाले शारीरिक बदलाव
1. लड़कों में प्यूबर्टी Puberty का सबसे पहला संकेत होता है अंडकोष (testicles) का बढ़ना और अंडकोष की थैली (scrotum) का छोटा और लाल होना।
2. धीरे-धीरे लड़कों के शरीर और गुप्तांग में भी बाल आने लगते है।
3. जैसे-जैसे प्यूबर्टी या यौवन की प्रगति होने लगती है, लड़कों में नर हॉर्मोन टेस्टोस्टेरोन बनने लगता है और इसके बढ़ने से शरीर में कई बदलाव आते है जैसे की आवाज़ का भारी होना। और दाढ़ी – मूछ का आना।
4. प्यूबर्टी Puberty के शुरू होने के कुछ समय बाद गुप्तांग और अंडकोष आकार में बढ़ने लगते है।
5. प्यूबर्टी के दौरान और एक चीज़ होने लगती है जिससे बच्चे अक्सर घबरा जाते है। यह है स्वप्रदोष (wet dreams) का होना । यह एक अनिच्छुक क्रिया है जिसपे किसी भी बढ़ते बच्चे का कोई ज़ोर नहीं होता। रात को सोते समय वीर्य का निकलना (semen ejaculation) स्वप्रदोष कहलाता है। यह किसी यौन सम्बन्धी सपने से नहीं होता। इसीलिए ज़रूरी है कि माँ-बाप अपने बढ़ते बच्चों को इस क्रिया के बारे में विस्तार से समझाएं।
6. प्यूबर्टी की उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होना।
इसलिए इस नाजुक पड़ाव में हमें अपने बच्चों को प्यूबर्टी Puberty के बारे में बताना चाहिए। यह एक अहम पड़ाव है जिसमे घबराने के बजाय एंजाय करना चाहिए। बच्चों को भावनात्मक सपोर्ट करे जिससे वे तनाव या अवसाद में न आए।
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